ललितपुर
वरिष्ठ अधिवक्ता लक्ष्मीनारायण तिवारीजी के निधन पर आयोजित शोकसभा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो.भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि जी हाँ, उत्तम वयोवृद्ध होना एक महान कला है और विवेक से भरे वयोवृद्ध में मानव जाति, जितनी पूर्णता से अभिव्यक्त होती है उतनी और किसी चीज में नहीं, उस वयोवृद्ध में जिसका हृदय हर नूतन चीज के लिए खुला रहता है, जो नई पीढ़ी का अभिनंदन करता है, जो अपने अनुभव को बांटने में सदा तत्पर रहता है, तमाम चिंताओं को दरकिनार करते हुए, जो इस चेतना से अनुप्राणित रहता है कि जो कुछ उसने जीवनपर्यन्त प्राप्त किया है, वह भावी पीढिय़ों को हस्तांतरित हो गया है। एक बालक की जिज्ञासा, नारी की करुणा और मानवोचित पुरुषार्थ का ऐसा अनूठा संगम हमारे हृदय के आँगन में काश सदा मौजूद रहे। प्रो.शर्मा ने आगे कहा कि दिवंगत बहुमुखी प्रतिभा के धनी बाबू की कीर्ति की आयु बेशक बड़ी लम्बी रहेगी। वे एक फौजदारी के श्रेष्ठ अधिवक्ता थे साथ ही तलस्पर्शी विधिवेत्ता। आज की सबसे बड़ी समस्या सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं के लिए एक कठिन चुनौती है। जो भी इसका सम्यक निर्वाह करने में सफल हो जाते हैं वे धन्य हैं। नि:सन्देह हमारे लोकतंत्र के मजबूत दो आधार हैं-मुक्त प्रेस तथा स्वतंत्र न्याय पालिका। दिवंगत ज्येष्ठ अधिवक्ता तिवारीजी अपने विधिक क्षेत्र में पारदर्शिता के लिए जाने जाते थे, इस कारण वे अपने परिपक्व ज्ञान और कौशल का लाभ अक्सर बार और बैंच में मधुर सामंजस्य स्थापित करने में अपनी सकारात्मक भूमिका के प्रति सदा सजग रहते थे। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने समाज के कर्ज को महसूस किया है और अंतिम सांस तक उसे चुकाने का प्राणपण से प्रयास किया है। विधिमर्मज्ञ जेम्स रसेल लॉवेल की ये पंक्तियां बड़ी सटीक हैं उसका जादू कहीं सुदूर नही था, ऐसा मानवीय था वह। न वह विषाद में डूबा, न दम्भ की उड़ान भरी, किसी भिक्षुक को हीनभाव नहीं दिया और न ही किसी राजकुमार का अहं बढऩे दिया, इसलिए कि उसने वहन किया मनुष्यता की सादगी का स्तर और जहां भी उसकी मुलाकात हुई अजनबी से, विदा ली तब मित्र था वह उनकी पावन स्मृति को सादर नमन।

रिपोर्ट –कमलेश कश्यप!



