बारिश बनी किसान की आफ़त, खुला बीमा और सिस्टम का झूठा चेहरा, बीमा काटा चुपचाप, मुआवजा रहता गायब – सिस्टम की बाढ़ में डूबे किसान”
मड़ावरा में लगातार बारिश से फसलें तबाह, किसान बेहाल – बीमा के नाम पर छल, प्रशासन मौन रिपोर्ट: आर.के. पटेल, समाचार तक, मड़ावरा
ललितपुर (मड़ावरा)।
तहसील मड़ावरा क्षेत्र में इस बार मानसून राहत नहीं, बल्कि तबाही बनकर आया है। 14 जून से शुरू हुई लगातार बारिश ने जहां एक ओर गर्मी से निजात दिलाई, वहीं दूसरी ओर किसानों के लिए ये बारिश मुसीबत बनकर टूटी है। खेतों में खड़ी खरीफ की फसलें जलमग्न हो गई हैं, बीज सड़ गए और किसानों की सारी मेहनत पर पानी फिर गया।
🌾 खेत नहीं, पानी की झील बन गए गांव

सिमिरिया, बहादुरपुर, रखवारा, धवा सहित कई गाँवों के किसान उपजिलाधिकारी मड़ावरा को ज्ञापन देकर अपनी पीड़ा सुना चुके हैं। खेतों में पानी भर गया है, जिससे सोयाबीन, मूंग, उड़द, अरहर जैसी फसलें पूरी तरह नष्ट हो गई हैं। मक्का और तिलहन की फसलें भी नहीं बचीं। किसानों ने बताया कि कई खेतों में बीज बह गए, जिससे उन्हें दोबारा बोआई करनी पड़ रही है।
📜 ज्ञापन में दर्ज है गांवों की पुकार
ग्राम प्रधान अवधेश पटेल, ग्याप्रसाद, सुंदर, काशीराम, सुजान सिंह, नरेंद्र जैन (पूर्व प्रधान), सुखसिंह, हनुमत, देवी प्रसाद, बालकिशन, नाथूराम, हेमंत कुमार, कौसल्या, द्रोपती समेत दर्जनों किसानों ने दस्तखत कर ज्ञापन सौंपा है। किसानों का कहना है कि हर बार मुआवजे में घपला होता है – कुछ खास किसानों को ज्यादा भुगतान और आम किसानों को सिर्फ 200-500 रुपए में टरका दिया जाता है।
💰 बीमा के नाम पर छलावा, कटते हैं पैसे – नहीं मिलता मुआवजा
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए उम्मीद नहीं, अब धोखा बन चुकी है। किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) से हर साल बीमा प्रीमियम काट लिया जाता है, लेकिन जब फसल बर्बाद होती है तो न पारदर्शी सर्वे होता है, न कोई क्लेम प्रक्रिया।
👉 लेखपाल और बीमा एजेंसियों की मिलीभगत का आरोप:
ग्रामीणों का आरोप है कि मुआवजा कुछ चुनिंदा किसानों को बढ़ा-चढ़ाकर दिया जाता है और फिर बंदरबांट होती है। वास्तविक पीड़ित किसान आज भी मुआवजे की बाट जोह रहे हैं।
🏚️ विकास कार्यों की खुली पोल – न सड़क बची, न नाला
लगातार बारिश ने मड़ावरा क्षेत्र के विकास कार्यों की पोल खोल दी है।
कच्ची सड़कें बर्बाद
नालियों का पानी घरों में
जगह-जगह कीचड़ और गंदगी
बीमारियों का खतरा बढ़ा
🙈 प्रशासन का मौन, फाइलों में दबी जांच की मांग
किसानों की समस्या पर प्रशासन मौन है। न कोई सर्वे शुरू हुआ, न बीमा जांच, न लेखपालों की कार्यप्रणाली पर सवाल। कई बार ज्ञापन, शिकायतें देने के बाद भी सिर्फ आश्वासन ही मिले।
🙏 ग्रामीणों की गुहार – सरकार से की चार प्रमुख मांगें

. तत्काल सर्वे कराकर नुकसान का उचित मुआवजा दिया जाए।
. बीमा क्लेम प्रक्रिया पारदर्शी बनाई जाए।. लेखपालों और . बीमा एजेंसियों की निष्पक्ष जांच हो।–“गांवों की सड़क और नालियों की मरम्मत प्राथमिकता पर हो।
🚨 नहीं तो किसान बनेगा कर्जदार, आत्मनिर्भर नहीं
यदि जल्द राहत नहीं मिली, तो किसान आत्मनिर्भर बनने की जगह कर्जदार बनते जाएंगे। प्रशासन की निष्क्रियता और बीमा कंपनियों की लापरवाही ने किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है।
📌 रिपोर्ट: आर.के. पटेल, समाचार तक, मड़ावरा



