
समाचार तक – विशेष रिपोर्ट
आर के पटेल
#INDIA ,यमन की अदालत और इस्लामिक शरीया कानून के तहत सज़ा पाए महिला को धार्मिक हस्तक्षेप से मिला जीवनदान
🔷 घटना की शुरुआत – भारत से यमन तक का सफर
केरल की रहने वाली निमिषा प्रिया, एक प्रशिक्षित नर्स, बेहतर नौकरी की तलाश में वर्ष 2008 में यमन पहुंचीं। वहां उन्होंने चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में काम शुरू किया और बाद में एक स्थानीय नागरिक तालाल अब्दो महदी के साथ मिलकर मेडिकल क्लिनिक खोला।
समय के साथ दोनों के बीच संबंध खराब हुए और आरोप है कि तालाल ने निमिषा का पासपोर्ट जब्त कर लिया। उन्हें न सिर्फ प्रताड़ित किया गया, बल्कि भारत लौटने से रोका गया। इसी तनाव और आज़ादी की चाहत में साल 2017 में निमिषा पर तालाल की हत्या का आरोप लगा।
हत्या के बाद शव को काटकर बैग में डालने का संगीन आरोप भी लगा, जिससे मामला और गंभीर हो गया।
⚖️ यमन की अदालत प्रक्रिया: शरीया कानून और क़िसास (Qisas)
यमन में इस्लामिक शरीया कानून लागू है, जिसके तहत हत्या के मामलों में “क़िसास” लागू होता है – जिसका मतलब है “जान के बदले जान”।
न्यायिक प्रक्रिया में:
निमिषा को अदालत ने 2020 में दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई।
तालाल के परिजनों ने कानून के तहत मिलने वाले “दिया” (रक्तमुआवज़ा) की पेशकश ठुकरा दी और कहा – “हम अल्लाह का कानून चाहते हैं, हमें मुआवज़ा नहीं चाहिए”।
इसके बाद 16 जुलाई 2025 को फांसी की तारीख तय कर दी गई।
🕌 धार्मिक मध्यस्थता: जब इंसानियत धर्म से बड़ी साबित हुई
इसी बीच भारत में इस खबर से चिंता की लहर दौड़ गई। कई सामाजिक संगठन, मानवाधिकार कार्यकर्ता और धार्मिक संस्थान इस मामले में हस्तक्षेप के लिए आगे आए।
भारत के प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु, ग्रैंड मुफ्ती ए.पी. अबूबकर मुसलियार ने सीधे यमन के अधिकारियों व धार्मिक नेताओं से बातचीत की।
उन्होंने इस्लाम में क्षमा, दया और इंसानियत की भावना को सामने रखते हुए मृतक के परिजनों से पुनर्विचार का आग्रह किया।
उनके साथ यमन के सूफी धर्मगुरु शेख हबीब उमर बिन हाफिज और अन्य मौलवी भी शामिल हुए।
इन सभी की पहल के बाद यह सर्वसम्मति बनी कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए फांसी पर तत्काल रोक लगाई जाए।
💰 मुआवज़ा जुटाने का प्रयास: समाज ने भी निभाई भूमिका
निमिषा की माँ और परिजनों ने भारत में “निमिषा प्रिया एक्शन काउंसिल” नाम से अभियान चलाया, जिसमें ‘दिया’ मुआवज़ा जुटाने के लिए ₹1.5 करोड़ रुपये से अधिक एकत्र किए गए।
यह राशि मृतक परिवार को क्षतिपूर्ति के रूप में देने का प्रस्ताव था, जिससे वे “क़िसास” से हटकर “माफी” का रास्ता अपना सकें।
हालांकि अंतिम निर्णय अभी भी मृतक परिवार की सहमति पर निर्भर है।
📢 समाज और राजनीति को मिला संदेश
इस पूरी घटना ने एक बार फिर साबित किया कि जब धर्म और राजनीति के नाम पर समाज में वैमनस्य फैलाया जाता है, तब ऐसे उदाहरण एकजुटता और भाईचारे की मिसाल बनते हैं।
मुस्लिम धर्मगुरु द्वारा एक भारतीय महिला (जो मुस्लिम नहीं हैं) की जान बचाने की पहल उन सभी के लिए करारा जवाब है जो धर्म के नाम पर समाज को बांटने की राजनीति करते हैं।
यह केवल एक महिला की जान बचाने की बात नहीं है, बल्कि एक वैश्विक संदेश है कि
“धर्म बांटता नहीं, जोड़ता है। इंसानियत सबसे बड़ा मजहब है।”
📌 मुख्य बिंदु सारणी, विषय विवरण
अभियुक्त निमिषा प्रिया (भारतीय नर्स, केरल)
स्थान यमन
अपराध हत्या, शव नष्ट करने का आरोप
अदालत निर्णय 2020 में फांसी की सज़ा
फांसी की तिथि 16 जुलाई 2025 (अभी स्थगित)
मध्यस्थ मुफ्ती अबूबकर मुसलियार, हबीब उमर आदि
प्रयासों का परिणाम फांसी पर फिलहाल रोक
सामाजिक संदेश धर्म से ऊपर मानवता,
🧾 निष्कर्ष
यह मामला केवल क़ानूनी नहीं, मानवीय है।
यह बताता है कि जब समाज, धर्मगुरु, और सामान्य लोग मिलकर कोई प्रयास करते हैं, तो मौत के दरवाज़े से भी ज़िंदगी वापस लाई जा सकती है।
मुस्लिम धर्मगुरु द्वारा यह हस्तक्षेप पूरे भारत और यमन में सद्भाव और भाईचारे की मजबूत नींव रखता है।
✍️ प्रस्तुतकर्ता:
समाचार तक आर. के. पटेल